गर्भावस्था एक बेहद संवेदनशील और महत्वपूर्ण समय होता है, जहां माँ और होने वाले बच्चे दोनों की सेहत का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसी दौरान कई तरह के परीक्षण किए जाते हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण जांच है – डबल मार्कर टेस्ट। यह टेस्ट विशेष रूप से गर्भस्थ शिशु में किसी भी क्रोमोसोमल असामान्यता या जन्मजात विकृति की संभावना को जानने के लिए किया जाता है।
बहुत से माता-पिता के मन में यह सवाल होता है कि जब डबल मार्कर टेस्ट की रिपोर्ट मिलती है, तो उसे कैसे समझें? क्या रिपोर्ट में “Low Risk” और “High Risk” का मतलब होता है? किन मानकों पर यह रिपोर्ट आधारित होती है?
इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे:
- डबल मार्कर टेस्ट क्या है?
- क्यों किया जाता है?
- रिपोर्ट में कौन-कौन से पैरामीटर्स होते हैं?
- Low Risk और High Risk का क्या अर्थ होता है?
- रिपोर्ट की व्याख्या कैसे करें?
- अगर रिपोर्ट में High Risk आता है तो आगे क्या करें?
डबल मार्कर टेस्ट क्या है?
डबल मार्कर टेस्ट एक ब्लड टेस्ट होता है, जो प्रेगनेंसी के 11 से 14 सप्ताह के बीच किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह जानना होता है कि गर्भस्थ शिशु को Down Syndrome, Trisomy 18 या अन्य किसी क्रोमोसोमल डिसऑर्डर का खतरा है या नहीं।
इस टेस्ट को आमतौर पर NT स्कैन (Nuchal Translucency Scan) के साथ किया जाता है, जिससे अधिक सटीक जानकारी मिलती है।
इस टेस्ट में कौन-कौन से पैरामीटर देखे जाते हैं?
डबल मार्कर टेस्ट में मुख्यतः दो बायोकेमिकल मार्कर की जाँच होती है:
- Free Beta hCG (Human Chorionic Gonadotropin):
- यह प्लेसेंटा द्वारा बनाया जाने वाला हार्मोन होता है।
- इसका स्तर अधिक या कम होना भ्रूण में असामान्यता का संकेत हो सकता है।
- PAPP-A (Pregnancy Associated Plasma Protein-A):
- यह एक प्रोटीन होता है जो प्लेसेंटा से ही बनता है।
- इसका कम स्तर Down Syndrome से जुड़ा हो सकता है।
डबल मार्कर टेस्ट की रिपोर्ट में क्या-क्या होता है?
जब आपको रिपोर्ट मिलती है, तो उसमें कई चीजें लिखी होती हैं:
1. MoM (Multiples of Median):
- यह दर्शाता है कि आपके हार्मोन लेवल सामान्य गर्भवती महिलाओं के मुकाबले कितने अधिक या कम हैं।
- सामान्य MoM वैल्यू होती है:
- Free Beta hCG: 0.5 – 2.5 MoM
- PAPP-A: 0.5 – 2.5 MoM
अगर यह स्तर इससे बाहर होता है, तो इसे जोखिम से जोड़ा जाता है।
2. Risk Ratio (जोखिम अनुपात):
- उदाहरण: 1:1000, 1:250, 1:50 आदि
- इसका अर्थ है – अगर लिखा है 1:250, तो इसका मतलब है कि ऐसी 250 महिलाओं में से 1 महिला के बच्चे में असामान्यता हो सकती है।
3. Risk Category:
- रिपोर्ट में लिखा होगा:
- Low Risk – कम खतरा
- High Risk – अधिक खतरा
उदाहरण:
- यदि रिपोर्ट में लिखा है: “Down Syndrome Risk – 1:950 (Low Risk)”, तो चिंता की बात नहीं है।
- लेकिन अगर लिखा है: “Down Syndrome Risk – 1:100 (High Risk)”, तो आपको आगे की जांच करवानी पड़ सकती है।
रिपोर्ट को कैसे समझें?
Step-by-step रिपोर्ट की व्याख्या:
✅ Step 1: अपनी उम्र और गर्भावस्था के हफ्ते देखें
डबल मार्कर टेस्ट की सटीकता आपकी उम्र और गर्भ के हफ्तों पर भी निर्भर करती है।
- 35 वर्ष से अधिक उम्र में Down Syndrome का खतरा अधिक होता है।
✅ Step 2: Free Beta hCG और PAPP-A के स्तर जांचें
- अगर Free Beta hCG > 2.5 MoM है – तो High Risk का संकेत हो सकता है।
- अगर PAPP-A < 0.5 MoM है – तो भी असामान्यता का खतरा माना जा सकता है।
✅ Step 3: NT स्कैन की रिपोर्ट को मिलाएं
- अगर NT स्कैन में nuchal translucency > 3mm है, तो खतरा बढ़ सकता है।
✅ Step 4: Risk Ratio को ध्यान से पढ़ें
- 1:250 से ज्यादा (जैसे 1:500, 1:1000) = Low Risk
- 1:250 से कम (जैसे 1:100, 1:50) = High Risk
✅ Step 5: Final Risk Category देखें
- Low Risk का मतलब है कि खतरा बहुत कम है।
- High Risk होने पर डॉक्टर आगे की जांच जैसे NIPT (Non-Invasive Prenatal Testing) या Amniocentesis की सलाह दे सकते हैं।
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High Risk रिपोर्ट आने पर क्या करें?
अगर आपकी रिपोर्ट में “High Risk” लिखा हो, तो घबराएं नहीं। यह जरूरी नहीं है कि बच्चा वास्तव में प्रभावित हो।
डॉक्टर आमतौर पर आगे के टेस्ट्स की सलाह देंगे:
1. NIPT (Non-Invasive Prenatal Test):
- यह एक सरल रक्त परीक्षण होता है।
- इसकी सटीकता 99% तक होती है।
2. Amniocentesis:
- इसमें गर्भ की थैली से तरल निकालकर उसकी जांच की जाती है।
- यह थोड़ा इनवेसिव टेस्ट होता है, पर अधिक सटीक होता है।
क्या डबल मार्कर टेस्ट में गलती हो सकती है?
हाँ, क्योंकि यह एक screening test है, diagnosis नहीं। इसका मतलब यह सिर्फ संभावनाएं बताता है, पक्की पुष्टि नहीं करता।
- कभी-कभी Low Risk रिपोर्ट में भी बच्चा प्रभावित हो सकता है।
- और कभी-कभी High Risk रिपोर्ट के बाद भी बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ होता है।
इसलिए अंतिम निर्णय हमेशा डॉक्टर की सलाह और अन्य टेस्ट्स के आधार पर लेना चाहिए।
डबल मार्कर टेस्ट से जुड़ी कुछ सामान्य शंकाएं
प्रश्न |
उत्तर |
क्या डबल मार्कर टेस्ट हर गर्भवती महिला को करवाना चाहिए? | यह विशेषकर 30+ उम्र की महिलाओं, या हाई रिस्क प्रेगनेंसी में सलाह दी जाती है। |
क्या इस टेस्ट के लिए फास्टिंग जरूरी है? | नहीं, यह टेस्ट बिना उपवास के किया जा सकता है। |
टेस्ट रिपोर्ट कितने दिनों में मिलती है? | आमतौर पर 3 से 5 कार्यदिवसों में। |
क्या डबल मार्कर टेस्ट से बच्चे को कोई नुकसान होता है? | बिल्कुल नहीं, यह एक सुरक्षित और गैर-इनवेसिव टेस्ट है। |
निष्कर्ष
डबल मार्कर टेस्ट गर्भावस्था के दौरान एक महत्वपूर्ण जांच है, जो गर्भस्थ शिशु में संभावित असामान्यताओं के बारे में प्रारंभिक संकेत देती है। इसकी रिपोर्ट को समझना थोड़ा तकनीकी हो सकता है, लेकिन अगर आप ऊपर बताए गए स्टेप्स को ध्यान में रखें और अपने डॉक्टर से सही सलाह लें, तो आप इसे सही रूप से समझ सकते हैं।
याद रखें – यह केवल एक screening test है, न कि अंतिम निष्कर्ष। घबराएं नहीं, बल्कि सटीक जानकारी लें और सोच-समझकर निर्णय लें।
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अपनी और अपने होने वाले बच्चे की सेहत के लिए सही मार्गदर्शन लेना ज़रूरी है – और वह शुरुआत एक अच्छे डॉक्टर से ही होती है।
अगर आप इस विषय में और जानकारी चाहते हैं, तो अपने गायनेकोलॉजिस्ट या फेटल मेडिसिन स्पेशलिस्ट से परामर्श जरूर करें।
FAQs (Frequently Asked Questions)
Q: डबल मार्कर टेस्ट की रिपोर्ट कब आती है?
उत्तर: डबल मार्कर टेस्ट की रिपोर्ट आमतौर पर 3 से 5 दिन में मिल जाती है।
Q: डबल मार्कर टेस्ट में High Risk आने का मतलब क्या होता है?
उत्तर: High Risk का मतलब है कि गर्भस्थ शिशु को किसी क्रोमोसोमल समस्या (जैसे Down Syndrome) का खतरा थोड़ा ज्यादा हो सकता है। इससे घबराएं नहीं, डॉक्टर आगे की पुष्टि जांच जैसे NIPT या Amniocentesis की सलाह देंगे।
Q: क्या डबल मार्कर टेस्ट 100% सही होता है?
उत्तर: नहीं, यह एक स्क्रिनिंग टेस्ट है, डाइग्नोसिस नहीं। यह सिर्फ संभावनाएं बताता है, पक्की पुष्टि नहीं करता।
Q: क्या डबल मार्कर टेस्ट करवाना जरूरी है?
उत्तर: यह हर महिला के लिए अनिवार्य नहीं है, लेकिन डॉक्टर इसे 30 वर्ष से अधिक उम्र या हाई-रिस्क प्रेगनेंसी में सलाह देते हैं।
Q: डबल मार्कर टेस्ट में क्या-क्या चेक किया जाता है?
उत्तर: इस टेस्ट में दो हार्मोन – Free Beta hCG और PAPP-A – के स्तर को जांचा जाता है ताकि भ्रूण में किसी असामान्यता की संभावना का आकलन किया जा सके।